तीन कृषि कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के आरोपियों को मिला बेल, जताई खुशी
Last Updated on May 9, 2024 by Gopi Krishna Verma
गिरिडीह। मोदी सरकार के तीन काला कृषि कानून के खिलाफ गिरिडीह में हुए किसान आन्दोलन को लेकर मुकदमें में कांग्रेस नेता नरेश वर्मा और आप नेता कृष्ण मुरारी शर्मा को गुरूवार को गिरिडीह व्यवहार न्यायालय के सीजेएम कोर्ट से बेल मिल गया।
अधिवक्ता मीता ठाकुर ने दोनों नेताओं की कोर्ट में पैरवी की। उक्त जानकारी आम आदमी पार्टी झारखंड के प्रदेश प्रवक्ता कृष्ण मुरारी शर्मा ने दी। उन्होंने बताया कि संयुक्त किसान संगठन के बैनर तले देश भर में तीन कृषि कानून के खिलाफ आन्दोलन आहूत किया गया था जिसके तहत 26 सितंबर, 2021 को गिरिडीह में तीनों कृषि कानून को रद्द करने की मांग को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, भाकपा माले और आम आदमी पार्टी के नेताओं के नेतृत्व में मशाल जुलूस निकाला गया था। इसी को लेकर नगर थाना गिरिडीह में प्राथमिकी संख्या 178/21 दर्ज किया गया था। जिसमें झामुमो के जिला अध्यक्ष संजय सिंह, कांग्रेस के जिला अध्यक्ष नरेश वर्मा, भाकपा माले नेता राजेश यादव और आम आदमी पार्टी के नेता कृष्ण मुरारी शर्मा पर आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 और लाॅकडाउन का उल्लघंन का मामला दर्ज किया गया था।
बताया कि किसान आंदोलन का परिणाम रहा कि तीनों काला कृषि कानून सरकार को वापस लेना पड़ा; लेकिन दुःख की बात यह है कि उस आन्दोलन में हजारों किसान शहीद हो गए। उन्होंने कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों के लिए तीन काला कृषि कानून बनाया था जिसके खिलाफ देशभर में आन्दोलन हुआ था। और अंततः सरकार को तीनों काला कृषि कानून वापस लेना पड़ा था।
श्री शर्मा ने कहा मुझे गर्व है कि वे किसान आंदोलन के हिस्सा थे। उन्होंने तीनों कानून की जानकारी देते हुए कहा कि पहला कानून – कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम -2020, दूसरा कानून – कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और तीसरा कानून था- आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020, तीनों कृषि कानून की विस्तार से जानकारी देते हुए आप नेता ने कहा कि पहला कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम -2020 के तहत देश के किसानों को उनकी उपज बेचने के लिए सरकारी मंडी के सामानान्तर प्राइवेट मंडी की स्थापना करना था। दूसरा कानून कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 इस कानून के तहत देशभर में कांट्रैक्ट खेती को बढ़ावा देना था और तीसरा कानून आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020 था। फसलों के भंडारण और फिर उसकी काला बाजारी को रोकने के लिए सरकार ने पहले Essential Commodity Act 1955 बनाया था। इसके तहत व्यापारी एक सीमित मात्रा में ही किसी भी कृषि उपज का भंडारण कर सकते थे। वे तय सीमा से बढ़कर किसी भी फसल को स्टॉक में नहीं रख सकते थे। लेकिन नए कृषि कानूनों में आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020 के तहत सरकार ने अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी कई फसलों को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से बाहर कर दिया।
सीमित भंडारण की सीमा को खत्म कर दिया गया था। पूंजीपति लोग खाने-पीने की वस्तु का असीमित भंडारण कर सकते थे। इससे देश भर में खाने-पीने सहित अतिआवश्यक वस्तुओं की महंगाई बढ़ जाती और हाहाकार मच जाता।