माल महाराज का मिर्जा खेले होली, जमुआ में वेंडर योजना की राशि बिना कुछ किए हड़प रहे वेंडर, पदाधिकारी बने मुकदर्शक
Last Updated on September 13, 2024 by Gopi Krishna Verma
जमुआ। जमुआ में महज कागज़ के टुकड़े बेच लाखों रुपए कमाने का गोरखधंधा जमुआ में जमकर हो रहा है।अफसरों एवं प्रतिनिधियों की भेंडरों से नापाक गंठजोड़ से मनरेगा के रुपए ताबड़तोड़ निकाले जा रहे हैं।
बिना कुछ किए भौचर के नाम पर 15वीं वित्त, मनरेगा, कल्याण, पंचायती राज, बाल विकास परियोजना, शिक्षा, वन एवं स्वास्थ्य, पौधारोपण, सिंचाई विभाग की राशि को हड़प रहे हैं। ये लाभुक के स्तर के अनुसार राशि अवैध वसूली कर रहे हैं। इस काले कारनामे में जमुआ के दर्जन भर लोग लगे हैं; लेकिन ऐसे तीन से चार वेंडर कर रहे है। इनके पास सामग्री के नाम पर कुछ नहीं। न तो इन्हे सीमेंट छड़ की एजेंसी है और न खाद्य आपूर्ति की अनुज्ञप्ति प्राप्त दुकान और न मोरम के लिए जमीन का लीज ही प्राप्त है। ऐसे में ये किस बिना पर बाउचर काट रहे हैं और इन्हें अधिकृत किसने और कैसे किया यह सवाल उठना स्वाभाविक भी है।
अभिश्रव के अनुपात में वे खनन विभाग एवं अन्य संबंधित विभाग को राजस्व जमा नहीं करते हैं। यह जांच का विषय है। इस धंधे से जुड़े दो से तीन लोगों की संपत्ति एकाएक कई गुना बढ़ी है। एक भाई तो गिरिडीह में बड़ा और आधुनिक मकान बना लिया। आय से अधिक संपत्ति के मामले इनके विरुद्ध दर्ज हो। ऐसा लाभुक बतलाते हैं। आय का कोई अन्य श्रोत के अभाव में आलीशान मकान बनाना एवं चार पहिए वाहन का खर्च निर्वहन करना आसान नहीं है।
जमुआ में आठ वेंडर सक्रिय हैं: योजनाओं में बाल विकास एवं शिक्षा और स्वास्थ्य में अलग वेंडर हैं।कस्तूरबा में अलग वेंडर हैं। कुल बीस वेंडर सक्रिय हैं।ब्लॉक में आठ में से चार ही पर अफसर व नेता मेहरबान हैं। चार वेंडर चांदी काट रहे हैं और चार वेंडर लोहा काट रहे हैं। ऐसा भेदभाव क्यों? जब वेंडर के पास कोई सामग्री नहीं तो उसी से वोचर लेने की बाध्यता क्यों है!
जमुआ वे मौजूदा वित्तीय वर्ष में मनरेगा में करोड़ों रुपए सामग्री के आए जिसका अधिकांश हिस्सा अफसरों एवं कंप्यूटर ऑपरेटर की मिली भगत से चार खासमखास वेंडर के पास गई। वेंडर के बीच पंचायतों या कार्यक्षेत्र का बंटवारा क्यों नहीं। इस विषय पर अफसर और प्रतिनिधि की चुप्पी कोई बडी वजह का संकेत देती है।
इस बाबत जमुआ भाग संख्या-12 के जीप सदस्य अनिता देवी ने कहा कि वेंडर प्रणाली ही बंद होना चाहिए। लाभुक से ही अभिश्रव लेना चाहिए अथवा जिनके पास जिस सामग्री की उपलब्धता है और उसका लाइसेंस हो उसी को आपूर्ति का आदेश दिया जाना चाहिए।