बाल-विवाह और अवैध मानव व्यापार की रोकथाम हेतु एकदिवसीय कार्यशाला में उपायुक्त ने दिया अधिकारियों को टिप्स
Last Updated on May 2, 2023 by dahadindia
राज्य में समुचित शिक्षा एवं जनचेतना की कमी के कारण बड़ी संख्या में, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह सम्पन्न होते हैं यह पुरानी सामाजिक कुरीति होने के साथ-साथ बच्चों के अधिकारों का एक निर्मम उल्लंघन है: उपायुक्त
गिरिडीह। बुधवार को गिरिडीह में बाल-विवाह और अवैध मानव व्यापार की रोकथाम हेतु एकदिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में आईएएस प्रशिक्षु, निदेशक डीआरडीए व अन्य संबंधित अधिकारी/कर्मी उपस्थित थे।
उपायुक्त ने कहा कि सभी बच्चों को परिपूर्ण देखभाल व सुरक्षा का अधिकार होता है, परन्तु बाल विवाह से बेहतर स्वास्थ्य, पोषण व शिक्षा पाने और हिंसा, उत्पीड़न व शोषण से बचाव के मूलभूत अधिकारों का हनन होता है। कम उम्र में विवाह करने से बच्चों के शरीर और मस्तिष्क, दोनों को बहुत गंभीर और घातक खतरे की संभावना रहती है। कम उम्र में विवाह से शिक्षा के मूल अधिकार का भी हनन होता है, इसकी वजह से बहुत सारे बच्चे अनपढ़ और अकुशल रह जाते हैं, जिससे उनके सामने अच्छे रोजगार पाने और बड़े होने पर आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की ज्यादा संभावना नहीं बचती है. बाल विवाह से बालिकाओं के साथ होने वाली यौन एवं घरेलू हिंसा को भी बढ़ावा मिलता है। भारत सरकार द्वारा देश में बाल विवाह के प्रभावी रोकथाम हेतु “बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006” लागू किया गया है. इस विशेष अधिनियम के अंतर्गत 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका एवं 21 वर्ष के कम उम्र के बालक का विवाह करना या रचाना एक संज्ञेय और गैर जमानती अपराध घोषित किया गया है. साथ ही बाल विवाह को शून्यकरण, इन्हें रोकने, पीड़ित बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने और दोषियों को सजा देने तथा संवेदीकरण व जागरूकता कार्यक्रम चलाने के लिए बाल विवाह निषेध अधिकारियों (सीएमपीओ) की नियुक्ति किये जाने का प्रावधान किया गया है। स्थानीय प्रथम न्यायिक मजिस्ट्रेट को बाल विवाह रोकने के लिए निषेधाज्ञा जारी करने की शक्तियां भी दी गई है। अधिनियम में बाल विवाह के आयोजन में सम्मिलित होने वाले रिश्तेदार, बारातियों, पण्डित, हलवाईयों, टेण्ट वाले, बैंड बाजा इत्यादि को सजा दिये जाने जैसे कई महत्वपूर्ण प्रावधान किये गये हैं। राज्य के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 को प्रभावकारी रूप से लागू करने हेतु झारखण्ड बाल विवाह प्रतिषेध नियमावली 2015 लागू किया गया है। जिसके अनुसार प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को बाल बाल विवाह प्रतिषेध पदाधिकारी बनाया गया है। बाल विवाह का विषय बाल संरक्षण के दायरे में आता है इसलिए इसकी प्रभावी रोकथाम हेतु मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) निर्धारित की जाती है।