एक हजार वर्ष तक कैसे अस्तित्व में रहेगा राम मंदिर? जानिए पूरी कहानी…

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Last Updated on April 14, 2023 by dahadindia

राम मंदिर के बारे में वह सबकुछ जिससे आप है अनजान और आपके लिए जानना है बहुत ज़रूरी

अयोध्या(उत्तरप्रदेश), नीज प्रतिनिधि। अयोध्या में बन रहे भगवान श्री राम मंदिर एक हजार वर्ष के लिए तैयार किया जा रहा है। 2024 तक बनने वाले इस मंदिर के डिजाइन से लेकर मैटेरियल तक का भरपूर ध्यान रखा जा रहा है।

500 सालों के संघर्ष के बाद बनाया जा रहा रामलला का मंदिर हजारों वर्ष तक सुरक्षित रहे। इसमें वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे प्राकृतिक आपदाओं से भी मंदिर सुरक्षित रहेगा। मंदिर निर्माण में लगाया जाने वाला सामान भी उच्च गुणवत्ता वाला है। जाहे वह राजस्थान का मकराना मार्बल हो, बंसी पहाड़पुर के पिंक स्टोन, नेपाल के गंडक नदी से शालिग्राम या फिर चंद्रपुर के सगौन की लकड़ी। आईए हम अब आपको विस्तार से उन सभी मैटेरियल के बारे में बताते हैं जिससे राम मंदिर एक हजार वर्ष तक अस्तित्व में बना रहेगा।

राजस्थान के मकराना मार्बल से मंदिर के बन रहे चौखट व बाजू:

सबसे पहले हम बात करते हैं मंदिर में लगाएं जाने वाले मार्बल की। मकराना मार्बल से मंदिर के चौखट व बाजू बनाए जा रहे हैं। मंदिर के गर्भगृह में मार्बल और मंडप निर्माण के लिए राजस्थान के मकराना के पिंक बलुआ पत्थरों से बने स्तंभों को लगाया जा रहा है, जिसे मकराना मार्बल कहा जाता है। यह संगमरमर के विश्व की सबसे उत्कृष्ट श्रेणी में से माना जाता है। मकराना के मार्बल के बारे में कहा जाता है कि यह वक्त के साथ कभी भी बदरंग नहीं होता और अपनी सफेदी बनाए रखता है। ये बहुत मजबूत, कठोर और डायफेनस होते हैं। मकराना मार्बल के सबसे महत्वपूर्ण गुणों में से एक पानी के रिसाव का प्रतिरोध है, क्योंकि इसमें 98 प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट व महज़ 2 प्रतिशत अशुद्धियाँ होती हैं। इसकी आयु 4.2 अरब वर्ष बताई जाती है।

बंसी पहाड़पुर के सैंड स्टोन से मंदिर की बन रही दीवारें:

अब हम बात करते हैं मंदिर में लगने वाले बंसी पहाड़पुर के सैंड स्टोन की राममंदिर निर्माण के लिए करीब चार लाख घन फीट पत्थर लगने की संभावना है। इसमें से करीब 2.75 लाख घन फीट पत्थर भरतपुर के बंसी पहाड़पुर के सैंड स्टोन का होगा। राजस्थान के भरतपुर के बंशी पहाड़पुर के पत्थरों के बारे में मान्यता है कि इसकी गुणवत्ता काफी अच्छी होती है। साथ ही यह लंबे समय तक चमकता रहता है। इस पत्थर की उम्र करीब 5000 वर्ष तक मानी जाती है। कहा जाता है कि इन पत्थरों पर पानी पड़ने से ये और ज्यादा निखर जाता है और हजारों वर्षों तक एक रूप में ही कायम रहता है।

नेपाल के गंडक नदी से लाए गए शालिग्राम से बनेगी रामलला की प्रतिमा:

आगे बढ़ते हुए अब हम बात करते हैं शालिग्राम पत्थर की जिसे नेपाल के गंडक नदी से लाया गया है। इससे कमल दल पर 51 इंच के रामलला की मूर्ति (पांच वर्ष की आयु वाली) विराजमान होगी। रामलला के हाथ मे धनुष और तीर भी होंगे। माता सीता सहित कई अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा भी इसी पत्थर से बनाई जाएगी। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी प्रकाश गुप्ता के अनुसार ये शालिग्राम चट्टानें 60 मिलियन वर्ष पुरानी हैं, जिसे दो अलग-अलग ट्रकों पर नेपाल के जनकपुर भगवान राम के ससुराल से अयोध्या लाई गई है।भगवान विष्णु ने राक्षस राजा हयग्रीव को हराने के लिए शालिग्राम पत्थर का रूप धारण कर लिया था। तब से इस पत्थर को भगवान विष्णु की शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है और इसे दैवीय गुणों से युक्त माना जाता है। यह हिमालय की पवित्र नदियों, विशेष रूप से नेपाल में गंडकी नदी में पाई जाती है। पत्थर को भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व माना जाता है। माना जाता है कि इसकी पूजा करने वालों के लिए यह सौभाग्य, समृद्धि और आशीर्वाद लाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और पहनने वाले को नुकसान से बचाने के लिए तावीज़ के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। राम मंदिर के लिए लाए गए शालिग्राम का ओर भी विशेष महत्व है। शालिग्राम का रंग श्यामल होने के कारण भी इससे भगवान की प्रतिमा बनाई जाती है।

चन्द्रपुर के सागौन से राममंदिर के बनेंगे 42 दरवाजे:

अब बात करते हैं चंद्रपुर के सागौन की जिससे राम मंदिर के 42 दरवाजे बन रहे हैं। इसकी उम्र 600 वर्ष बताई गई है। मंदिर के खिड़की भी इसी लकड़ी से बनेंगे। आइए जानते हैं क्या खास है इस लकड़ी में ?

8.0 तीव्रता की भूकंप भी मंदिर को नहीं पहुंचा सकेगी कोई नुक़सान:

कभी कोई तूफान या भूकंप भी आए तो मंदिर का बाल भी बांका न हो, इस पर इंजीनियर और विशेषज्ञ ध्यान दे रहे हैं। धर्मनगरी अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण के दौरान मंदिर की मज़बूती के लिए खास तौर पर ध्यान दिया जा रहा है। मंदिर हज़ारों साल तक कैसे सुरक्षित रहे, इस लिहाज़ से विशेषज्ञ हाई क्वालिटी सामग्री के साथ ही तकनीक पर भी ध्यान दे रहे हैं। मंदिर इसलिए हज़ारों सालों तक सुरक्षित रहेगा, क्योंकि इसकी नींव बहुत मज़बूत बनाई जा रही है। निर्माण की मज़बूती का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि मंदिर की नींव 60 फीट नीचे से ली गई है। 60 फीट नीचे कंक्रीट की गहरी चट्टानें खड़ी करके उस पर निर्माण किया जा रहा है।

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