प्रकृति का पर्व करमा धूमधाम से मना

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Last Updated on September 14, 2024 by Gopi Krishna Verma

गिरिडीह। ज़िले में शनिवार को झारखण्ड के दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व है करमा। वहीं ज़िले के सभी प्रखंडों समेत सभी गांवों में अपने भाईयों की दीर्घायु को कमाना को लकेर उपवास रखी। वहीं जिसे आदिवासी और सदान मिल-जुलकर सदियों से मनाते आ रहे हैं।

यह पर्व सदाचार, परंपरा और सामाजिक एकता के प्रतीक है। मान्यता के अनुसार करमा पर्व के अवसर पर बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु एवं मंगलमय भविष्य की कामना करती हैं। वहीं यह सर्वविदित है कि झारखण्ड के जनजातियों ने जिन पंरपराओं एवं संस्कृति का जन्म दिया, सजाया-संवारा, उन सबों में नृत्य, गीत और संगीत का परिवेश प्रमुख है। लोक पर्व पर ढोल और मांदर के थाप पर झूमते गाते हैं।

कर्मा पर्व भी आदिवासी संस्कृति का प्रतीक है। आदिवासी समाज में कर्मापूजा पर्व एक लोकप्रिय उत्सव है। इस अवसर पर करमा नृत्य किया जाता है।इधर गिरिडीह ज़िले के शहरी क्षेत्र सिहोडीह, सिरसिया, पपरवातांड, उदनाबाद , हरसंगरायडीह, सदर प्रखंड के लेदा, मिर्ज़ाडीह, सिन्दावरिया, कोवड, पिंडताण्ड, रानिखवा, हरिलवाताण्ड, माघेयटोला, केंदुवागढह, मोतीलेदा, छोटकि खरगडीहा, बिजलीबथान समेत सभी जगह पर कर्मा पर्व जोर-सोर से मनाया गया।

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