आजादी के आंदोलन में बिरसा मुंडा का था अहम योगदान
Last Updated on June 9, 2024 by Gopi Krishna Verma
आप और माले नेता ने बिरसा मुंडा को दी श्रद्धांजलि
गिरिडीह। बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर रविवार को सिरसिया स्थित भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर माले नेता राजेश सिन्हा और आप नेता कृष्ण मुरारी शर्मा ने उनको याद किया।
नेताद्वय ने कहा कि बिरसा मुंडा का आजादी के आन्दोलन में अहम योगदान था। कहा कि 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालांकि आदिवासी विद्रोह करते थे, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हथियारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था। यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था। पिछले सभी विद्रोह से सीखते हुए, बिरसा मुंडा ने पहले सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर छेड़ दिया अंग्रेजों के ख़िलाफ़ महाविद्रोह ‘उलगुलान’।
आदिवासी पुनरुत्थान के जनक थे बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा की कही बातों पर लोग विश्वास करने लगे और बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उन्हें ‘धरती आबा’ कहा जाने लगा।
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को बिहार के उलीहातू गांव-जिला रांची में हुआ था। बिरसा को 25 साल में ही आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक शोषण का काफी ज्ञान हो गया था। बिरसा मुंडा का जीवन सिर्फ 25 साल का रहा। 09 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई।
मौके पर संजय यादव, अशोक चौधरी, गौरीशंकर यादव , मुर्शीद मिर्जा, मो. कबीर सहित कई लोग मौजूद थे।