राष्ट्रपति मुर्मू को दलित के कारण मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश से रोका गया…? जानिए पूरी सच्चाई..
Last Updated on June 28, 2023 by Gopi Krishna Verma
क्या पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ भी हुई है ऐसी घटना? आइए जानते हैं क्या है वाइरल न्यूज की पूरी सच्चाई…?
आजादी के 75 वर्षों बाद भी भारत में अस्पृश्यता यानी छुआछुत का पूर्ण उन्मूलन नहीं हो सका है। भारतीय संविधान के 17 वें अनुच्छेद में कहा गया है कि अस्पृश्यता एक दंडनीय अपराध है। अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए 1955 में भारत सरकार द्वारा अस्पृश्यता अपराध अधिनियम पारित किया गया है। बावजूद आज़ आजादी के अमृतकाल में भी छुआछुत जारी है और वह भी देश के प्रथम नागरिक के साथ। आखिर पूरी सच्चाई क्या है जानने के लिए पूरी ख़बर जरूर पढ़ें।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बीते मंगलवार, 20 जुन को दिल्ली के श्री जगन्नाथ मंदिर में पूजा करने गई थी। वहां से उनकी पूजा के दौरान मंदिर के गर्भ गृह से बाहर की तस्वीर को लेकर सोशल मीडिया बहस चल रही है। दरअसल उस दिन अपने 65वीं जन्मदिन और भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 के मौके पर श्रीमती मुर्मू हौज खास के जगन्नाथ मंदिर गईं थीं। वहां पूजा करते हुए उनकी तस्वीर राष्ट्रपति के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी जारी की गई है। ट्विटर पर उन्होंने रथ यात्रा की शुरुआत पर बधाई दी है। उस तस्वीर में साफ दिख रहा है कि श्रीमती मुर्मू मंदिर के अंदर गर्भ गृह के दरवाजे के बाहर हाथ जोड़े खड़ी हैं और अंदर पुजारी पूजा करा रहे हैं।
कुछ लोगों का आरोप है कि अनुसूचित जनजाति समुदाय से आने के कारण राष्ट्रपति मुर्मू को मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश नहीं करने दिया गया।
इस सवाल को और अधिक बल तब मिल गया जब सोशल मीडिया पर श्रीमती मुर्मू के साथ केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव और धर्मेंद्र प्रधान दोनों की भी तस्वीर मंदिर के गर्भ गृह में पूजा करते दिख रहे हैं। ‘द दलित वॉयस’ ट्विटर हैंडल से अश्वनी वैष्णव और राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू की तस्वीरें ट्वीट की गई है और लिखा गया है, “अश्वनी वैष्णव(रेल मंत्री)-अनुमति, द्रौपदी मुर्मू(राष्ट्रपति)-अनुमति नहीं।”
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने भी श्रीमती मुर्मू और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की तस्वीर ट्वीट किया है।
उन्होंने लिखा है,” दिल्ली के जगन्नाथ मंदिर में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान मंदिर के अंदर पूजा कर रहे हैं और मूर्तियों को छू रहे हैं, लेकिन ये चिंता की बात है कि इसी मंदिर में राष्ट्रपति मुर्मू, जो भारतीय गणराज्य की पहली नागरिक हैं, को बाहर से पूजा करने दिया गया।”
उन्होंने इस पर स्पष्टीकरण की मांग करते हुए इसमें शामिल पुजारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की है।
इस बात को मुद्दा बनाने को लेकर भी कई लोग कर रहे निंदा:
श्रीमती मुर्मू की इस वाइरल तस्वीर और मंदिर प्रशासन पर सवाल खड़े करने की कई ट्विटर यूजर आलोचना कर रहे हैं। उनका तर्क है कि राष्ट्रपति मुर्मू इससे पहले कई मंदिरों के गर्भ गृह में पूजा कर चुकी हैं।
लेखक कार्तिकेय तन्ना ने श्रीमती मुर्मू की देवघर के वैद्यनाथ मंदिर और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की तस्वीरें ट्वीट की।
वहीं इशिता नाम की ट्विटर यूजर ने भी देवघर और वाराणसी की तस्वीरें ट्वीट करते हुए लिखा है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में ‘झूठी ख़बरें फैलाना बंद करनी चाहिए’ क्योंकि वो राष्ट्रपति हैं और सब उनका सम्मान करते हैं।
क्या कहते हैं मंदिर के सेक्रेटरी:
जगन्नाथ मंदिर के ‘श्री नीलाचल सेवा संघ’ के सेक्रेटरी रवींद्र नाथ प्रधान ने इन आरोपों को नकारते हुए तथ्य बताए हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया पर ये झूठ फैलाए जाने की सूचना मिली है कि जनजातीय समाज से होने के कारण राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई।
उन्होंने कहा, “ये झूठ है कि मंदिर में राष्ट्रपति के साथ भेदभाव हुआ। प्रतिवर्ष गर्भगृह को मात्र 30 मिनट के लिए ही खोला जाता है, जब रथयात्रा के मौके पर भगवान जगन्नाथ का आवाहन किया जाता है। आवाहन में मुख्य अतिथि के भाग लेने की परंपरा रही है। उस समय केवल पुजारी और मुख्य अतिथि को ही गर्भगृह में जाने की अनुमति होती है। जब राष्ट्रपति आईं, तब तड़के सुबह था। हमने मंदिर परिसर में नियमों के पालन के साथ-साथ प्रोटोकॉल्स भी मेंटेन किया।”
जब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ भी हुई थी ऐसी घटना:
देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ एक मंदिर में दुर्व्यवहार का मामला सामने आ चुका है। इस मामले में राष्ट्रपति भवन ने भी असंतोष जाहिर किया था, लेकिन मंदिर प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।
घटना 18 मार्च, 2018 की है जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपनी पत्नी के साथ जगन्नाथ मंदिर गए थे। इस दौरे के ‘मिनट्स’ मीडिया में लीक हुई जिसमें कहा गया था, “महामहिम राष्ट्रपति जब रत्न सिंहासन (जिस पर प्रभु जगन्नाथ विराजमान होते हैं) पर माथा टेकने गए तो वहां उपस्थित खुंटिया मेकाप सेवकों ने उनके लिए रास्ता नहीं छोड़ा। कुछ सेवक महामहिम के शरीर से चिपक रहे थे। यहां तक कि महामहिम की पत्नी, जो भारतवर्ष की ‘फर्स्ट लेडी’ हैं, उनके सामने भी आ गए थे।
सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति ने पुरी छोड़ने से पहले ही जिलाधीश अरविंद अग्रवाल से अपना असंतोष जाहिर कर दिया था। राष्ट्रपति भवन की ओर से भी असंतोष व्यक्त किया गया था। मार्च में हुई घटना तीन महीने बाद जून में पता चला था। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी इस संवेदनशील मामले में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी।